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Wednesday, December 9, 2020

शतावरी










 शतावरी क्या है?


हिमालय की गोद में प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए कई अनमोल उपहार मौजूद हैं। हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक जड़ी बूटियों की भरमार है और शायद ही मनुष्‍य की जरूरत की ऐसी कोई जड़ी बूटी होगी जो हिमालय में मौजूद न हो। शतावरी भी हिमालय और हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों में से एक है।


शतावरी आयुर्वेद में सबसे पुरानी जड़ी बूटियों में से एक है और भारतीय औषधियों पर लिखे गए अधिकतर प्राचीन ग्रंथों में भी शतावरी का उल्‍लेख मिलता है। चरक संहिता औरअष्‍टांग हृदयम दोनों में ही शतावरी को स्त्रियों के लिए शक्‍तिवर्द्धक बताया गया है।

शतावरी एक ऐसी जड़ी बूटी है जो स्‍त्री प्रजनन प्रणाली में सुधार लाने में मदद करती है। आयुर्वेद में शतावरी को ‘सौ रोगों में प्रभावकारी’ बताया गया है। इसके अलावा तनाव-रोधी और एंटीऑक्‍सीडेंट गुणों से युक्‍त होने के कारण शतावरी तनाव एवं बढ़ती उम्र से संबंधित समस्‍याओं के इलाज में बहुत असरकारी जड़ी बूटी मानी जाती है। इस जड़ी बूटी के महत्‍व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आयुर्वेद में शतावरी को ‘जड़ी बूटियों की रानी’ कहा जाता है।

शक्तिवर्धक के रूप में

विभिन्न शक्तिवर्धक दवाईयों के निर्माण में सतावर का उपयोग किया जाता है। यह न केवल सामान्य कमजोरी, बल्कि शुकवर्धन तथा यौनशक्ति बढ़ाने से संबंधित बनाई जाने वाली कई दवाईयों जिनमें यूनानी पद्धति से बनाई जाने वाली माजून जंजीबेल, माजून शीर बरगदवली तथा माजून पाक आदि प्रसिद्ध हैं, में भी प्रयुक्त किया जाता है। न केवल पुरूषों बल्कि महिलाओं के लिए भी इससे कई दवाईयां बनाई जाती है। महिलाओं के विभिन्न योनिदोषों के निवारण के साथ-साथ यह महिलाओं के बांझपन के इलाज हेतु भी प्रयुक्त किया जाता है। इस संदर्भ में यूनानी पद्धति से बनाया जाने वाला हलवा-ए-सुपारी पाक अपनी विशेष पहचान रखता है।


दुग्ध बढ़ाने हेतु


माताओं का दुग्ध बढ़ाने में भी सतावर काफी प्रभावी सिद्ध हुआ है तथा वर्तमान में इससे संबंधित कई दवाईया बनाई जा रही हैं। न केवल महिलाओं बल्कि पशुओं–भैसों तथा गायों में दूध बढ़ाने में भी सतावर काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है।

चर्मरोगों के उपचार हेतु


विभिन्न चर्म रोगों जैसे त्वचा का सूखापन, कुष्ठ रोग आदि में भी इसका बखूबी उपयोग किया जाता है।


शारीरिक दर्दो के उपचार हेतु

आंतरिक हैमरेज, गठिया, पेट के दर्दो, पेशाब एवं मूत्र संस्थान से संबंधित रोगों, गर्दन के अकड़ जाने (स्टिफनेस), पाक्षाघात, अर्धपाक्षाघात, पैरों के तलवों में जलन, साइटिका, हाथों तथा घुटने आदि के दर्द तथा सरदर्द आदि के निवारण हेतु बनाई जाने वाली विभिन्न औषधियों में भी इसे उपयोग में लाया जाता है।


उपरोक्त के साथ-साथ विभिन्न प्राकर के बुखारों (मलेरिया, टायफाईड, पीलिया) तथा स्नायु तंत्र (Nervous System) से संबंधित विकारों के उपचार हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है। ल्यूकोरिया के उपचार हेतु इसकी जड़ों को गाय के दूध के साथ उबाल करके देने पर लाभ होता है। इसी प्रकार इसकी जड़ों को नारियल तेल में मिलाकर पेस्ट बनाकर लेप करने से बॉयल्स का उपचार होता है। उपरोक्तनुसार देखा जा सकता है कि सतावर काफी अधिक औषधीय उपयोग का पौधा है। यूं तो अभी तक इसकी बहुतायत में उपलब्धता जंगलों से ही है परन्तु इसकी उपयोगिता तथा मांग को देखते हुए इसके कृषिकरण की आवश्यकता महसूस होने लगी है तथा कई क्षेत्रों में बड़े स्तर पर इसकी खेती प्रारंभ हो चुकी है जो न केवल कृषिकरण की दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी काफी लाभकारी सिद्ध हो रही हैं।


शतावरी यौन विकारों का एक प्रबल उपाय है। यह महिलाओं के प्रजनन अंगों  के लिए एक शक्तिशाली यौन और कायाकल्प टॉनिक है। यह प्रजनन अंगों के लगभग सभी विकारों के इलाज में मदद करती है। यह एस्ट्रोजन उत्पादनको उत्तेजित करती है और मासिक धर्म चक्र को भी नियंत्रित करती है। पुरुषों में यह शुक्राणुओं  की संख्या बढ़ाती है और शुक्राणु की गुणवत्ता और गतिशीलता में सुधार लाती है। यह यौन स्वास्थ्य समस्याओं में अपने प्रभाव के कारण बांझपन के उपचार में भी प्रयोग की जाती है।

शतावरी से कामेच्छा बढ़ती है। ये आपके हॉर्मोन को संतुलित करता है और परुष और महिलाओं के यौन विकार ठीक करता है। इसको लेने से चिंता जैसे रोग दूर होने के साथ साथ यह पुरुषों की शारीरिक और मानसिक विकार ठीक करता है। इसके उपयोग से  कामेच्छा के साथ शुक्राणुओं की मात्रा और गतिशीलता भी बढ़ती है।



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